प्रेम की परिभाषा क्या है

प्रेम की परिभाषा क्या है,
आशा और निराशा क्या है।
मैं अब तक ये समझ सका ना,
इस जीवन की गाथा क्या है।


लोगों ने तो यह कह डाला
यह संसार है नाटकशाला
इसमें हम करते चरित्र क्यों,
इसका सही खुलासा क्या है।


दुःख में निकलते हैं आंसू क्यों
सुख में मिलता है सुकून क्यों
ना मैं जानूँ सबब क्या इनका,
आखिर यहाँ तमाशा क्या है।


आज गया तो कल भी होगा
इस उलझन का हल भी होगा
कोई मुझे बता दे इन पर,
छाया हुआ कुहासा क्या है।

"महकता सावन"

महकता सावन अब आ ही गया
अब तो शरम का परदा हटाओ सनम।


दिन आ ही गये हैं बहारों के जब
अब तो खुलकर मुस्कुराओ सनम।


याद आएँ जो मेरी वो यादें हँसी
तो प्यार का एक गीत गुनगुनाओ सनम।


पास आके हुआ तेरे बेचैन मैं
अब यूँ ही चुप सी ना लगाओ सनम।


"राना" मर जाएगा अब तेरी याद में
वादा अपना यूँ ही ना तोड़ जाओ सनम।


"टूटा मन"

होता बहुत दुखी है इस प्यार के चमन में
इंसान का जब यारों विश्वास टूटता है I


देखे जो गम किसी का वो अपनी निगाहों से
उस पल वहां ठहर कर कई बार सोचता है।


ये गम की आँधियाँ क्यों रुलाती हैं किसी को
आखिर सबब ये क्या है खुद से वो पूछता है।


दुनियां में ये अपने पराये हैं किसलिए
होकर अधीर वो ज़िंदगी की मज़िल ढूंढता है।


आएगा एक सवेरा सबकी ख़ुशी को लेकर
इस आस को लिए वह बस सपने संजोता है।

"मेरे अज़नबी"

क्यूँ अज़नबी होकर भी,
दिल के करीब हो तुम I
क्यूँ इक ख्वाब बनकर,
मन के करीब हो तुम I

कुछ सोचता हूँ जब भी
कुछ चाहता हूँ जब भी
आ जाता है नज़र क्यूँ
चेहरा तुम्हारा
क्यूँ ऐसा लगता है,
मेरे हबीब हो तुम I


क्यूँ देखता हूँ तुझमें मैं जीवन की खुशियाँ
क्यूँ देखते ही तुमको भर आती हैं अँखियाँ
तुम अज़नबी हो फिर क्यूँ
तुम्हे खोने का डर है
क्यूँ ये महसूस होता,
मेरे पल पल मे हो तुम I


क्यूँ तन्हाई मे साथ चाहूं तुम्हारा
क्यूँ लगता है तुम बिन ना जीना गंवारा
मैं बेचैन होता क्यूँ
देखकर तुमको औरों संग
क्यूँ प्यार करने लगा हूँ मैं तुमसे,
क्यूँ बनके धड़कन दिल मे बसे हो तुम I




"इक बार सोचता हूँ"

इक बार सोचता हूँ,
ज़िंदगी क्या है
रिश्ते क्या हैं
फिर ठहर जाता हूँ
शून्य में देखता हूँ
फिर सोचता हूँ,


हम घिर चुके हैं
नीचे वसुधा है
ऊपर अंबर है
जाएँ तो जाएँ कहाँ
फिर ठहर जाता हूँ
कुछ सकुचाता हूँ
डर के घबराता हूँ
फिर सोचता हूँ,


आकाश तो पिता है
धरती तो माता है
ये कैसा नाता है
अनंत की छाव में
पृथ्वी की गोद में
इक बेटे के प्राण को
यमराज लेके जाता है
ये कैसा नाता है
फिर ठहर जाता हूँ
पीरा से भर जाता हूँ
मन को समझाता हूँ
फिर सोचता हूँ,


मिट्टी का तन है ये
मिट्टी में मिलने को
प्राणों की खुशबू है
ईश्वर से जुड़ने को
माता पिता ने बनाई जो सृष्टि है
बेटे को भेजा है
शोभा बढ़ाने को
फिर ठहर जाता हूँ
संतुष्टि से भर जाता हूँ
शून्य में देखता हूँ
और देखता ही जाता हूँ,